बच्चा मनुष्य का पिता है, इसका मूल अर्थ यह है कि मनुष्य वास्तव में, अपने प्रारंभिक वर्षों के दौरान विकसित किए गए व्यवहार और आदतों का उत्पाद है। वर्ड्सवर्थ ने कहा है कि एक बच्चा जो सीखता है और आत्मसात करता है वह उसके बाद के जीवन में उसके शब्दों और कार्यों में प्रतिबिंबित होगा।
सही अर्थों में शिक्षण का अर्थ केवल संप्रेषण करना या कोई निर्देश देना ही नहीं बल्कि प्रभाव डालना है। शिक्षकों या गुरु का कर्तव्य केवल ज्ञान का संचार करना नहीं है, बल्कि बच्चों को बढ़ने, उपयुक्त दृष्टिकोण, मूल्यों और उनके व्यक्तित्व को विकसित करने में भी मदद करना है। समाज में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण और मूल्यवान दोनों है। जिस समाज में वह रहता है उस पर इसका दूरगामी प्रभाव पड़ता है और शिक्षक से अधिक गहरा प्रभाव किसी अन्य व्यक्तित्व का नहीं हो सकता। छात्र शिक्षक के प्यार और स्नेह, चरित्र, योग्यता और नैतिक प्रतिबद्धता से गहराई से प्रभावित होते हैं। शिक्षण वह कला/पेशा है जो अन्य सभी व्यवसायों को सिखाता और बनाता है।
एकलव्य विद्यालयों की स्थापना दूरस्थ क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति (ST) के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है। मुझे विश्वास है कि मैं, अपने शिक्षकों के सहयोग से विद्यार्थियों में उनकी क्षमता, बुद्धि, योग्यता और दक्षता को बढ़ाने के लिए नए उत्साह और प्रेरणा का संचार करने में सक्षम होऊंगा।
जितेंद्र सिंह तँवर
प्राचार्य
EMRS Bandhwa Lormi